• वर्षा रायकवार
बुंदेलखंड। आजकल देश जलवायु परिवर्तन की समस्या से जूझ रहा है, जिससे बुंदेलखंड भी अछूता नहीं रह गया। जलवायु परिवर्तन के कारण पर्यावरण में अनेक प्रकार के परिवर्तन देखने को मिलते है जैसे तापमान में वृद्धि, वर्षा का कम या ज्यादा होना, पवनों की दिशा में परिवर्तन होना आदि, जिसके फलस्वरूप कृषि पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है। जलवायु परिवर्तन का मुख्य कारण ग्लोबल वार्मिंग है। हम सभी देख रहे की भूमंडल पर बढ़ रहे तापमान के कारण आज ध्रुवीय हिम पिघलते जा रहे हैं, जिसके परिणामस्वरूप समुद्रों तथा नदियों के जलस्तर में वृद्धि होती जा रही है और इससे बाढ़ एवं चक्रवातों की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है।
बुंदेलखंड में सूखे का संकट अधिक है, क्योंकि आज भी सिचाई संबंधित व्यवस्था मानसून आधारित है तथा कृषि योग्य भूमि का दो तिहाई भाग वर्षा आधारित क्षेत्र है। मध्य भारत में बसे बुंदेलखंड में पिछले कुछ दशकों से गर्म हवाओं का खतरा बढ़ता जा रहा है। ये जलवायु आपदाएं कृषि उत्पादन पर भारी मात्रा में नुकसान पंहुचा रही है जिससे प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष माध्यम से जैसे फसलों, मृदा, मवेशी, कीट पंतगो पर प्रभाव आदि के द्वारा ज्यादा नुकसान हो रहा है।

बुंदेलखंड में कई दशकों से वर्षा अवधि में कमी के कारण कृषि उत्पादन में गिरावट देखी जा रही है।
रेडियो बुंदेलखंड से चर्चा के दौरान बुंदेलखंड विश्वविद्यालय के कृषि प्रोफेसर डॉ. संतोष पांडे और डॉ. सत्य वीर सिंह सोलंकी ने बताया कि जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने के लिए किसानों को फसलों की ऐसी प्रजातियों का चयन करना होगा, जिनमें शुष्कता एवं लवणता का दबाव सहने की क्षमता हो और जो बाढ़ एवं अकाल से प्रभाव शून्य हो। फसल प्रबंधन प्रणाली को संशोधित करना, सिंचाई जल संबंधी व्यवस्था में सुधार लाना, नई कृषि तकनीकियों जैसे संसाधन, संरक्षण प्रोद्यौगिकी, फसल विविधीकरण, कीट प्रबंधन को सुधारना, मौसम पूर्वानुमान व्यवस्था की जानकारी के अनुसार खेती को अपनाना चाहिए। साथ ही साथ कृषि प्रोफेसर ने बताया कि कृषि से जुडी हुई सरकारी योजनाओं का लाभ किसानो को लेना चाहिए जो जलवायु अनुकूल होती है जैसे गोबर गैस, सोलर पंप, फसल बीमा योजना, अनेको कृषि उपकरण की योजनायें जो जलवायु परिवर्तन को रोकने में सहायक है। उन्होंने बताया की प्रत्येक फसल को विकसित होने के लिये एक उचित तापमान, उचित प्रकार की मृदा, वर्षा तथा आर्द्रता की आवश्यकता होती है और इनमें से किसी भी मानक में परिवर्तन होने से फसलों की पैदावार प्रभावित होती है।
उर्वरक की जगह कम्पोस्ट खाद, केंचुआ खाद, रासायनिक कीटनाशक की जगह नीम के पेस्ट आदि का प्रयोग करना चाहिए। किसानों को अब परंपरागत खेती के बजाय कम दिनों में होने वाली नकदी फसलों की तरफ रूख करना चाहिए। नकदी फसल की खेती में किसान सब्जी, फूल, बागवानी आदि की कृषि कर सकते हैं।
तारा और अज़ीम प्रेम जी यूनिवर्सिटी के सहयोग से सामुदायिक रेडियो बुंदेलखंड के माध्यम से शुरू हुए कार्यक्रम ‘’शुभकल’’ में समुदाय को ध्यान में रखते हुए कार्यक्रम का निर्माण किया। कार्यक्रम में, जलवायु परिवर्तन से सम्बंदित समस्त जानकारी दी गयी, साथ ही कृषि एक्सपर्ट के साथ ही समुदाय के लोगो की जानकारी और विषयगत क्षेत्रीय लोकगीत को प्रोग्राम में शामिल किया गया । इसके अलावा मृदा प्रबंधन, जैविक खेती, शून्य जुताई, कृषि अवशेषों की अवधारण, फसल प्रणाली अनुकूलन, सिंचाई की कवरेज का विस्तार और लेजर भूमि समतलन, सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली के माध्यम से जल उपयोग दक्षता में सुधार, जीरो टिलेज जैसी तकनीक किसानों के लिए अधिक लाभदायक है। इंटरक्रापिंग पद्धति को शामिल कर, जलवायु परिवर्तन के खतरों से अगाह किया, साथ में गाँव-गाँव जाकर छोटे समूहों में, नैरो कास्टिंग के माध्यम से कार्यक्रम को सुनवाकर, जलवायु परिवर्तन से कृषि पर पड़ रहे प्रभाव पर जागरूक किया। ऐसे ही समुदाय से एक किसान है देव सिंह राजपूत जी, जो ग्राम जमुनिया खास, जिला निवाड़ी में रहते है।
मौसम के मुताबिक खेती से फायदा
जलवायु परिवर्तन से कृषि पर पड़ रहे प्रभाव पर इन्होंने बताया, शुरुआत में हमें ये सब बाते अजीव से लगती थी, लेकिन दिन प्रतिदिन पानी की कमी और मौसम में हो रहे वदलाव से हमारी खेती प्रभावित होने लगी तो मुझे लगा ये सब तो अपने आप होता होंगा लेकिन जब मेने रेडियो कार्यक्रम में सुना तो मेने अपने खेतो में जलवायु अनुकूल बीज लगाने शुरू किये, साथ ही मौसम के अनुसार खेती करना प्रारंभ किया तो आज में अपने खेतों से अधिक मुनाफा कमा रहा हूं। देव सिंह राजपूत अपने खेतो में, कुछ विदेशी खेती भी कर रहे जैसे थाई एप्पल बेर और कश्मीरी एप्पल आदि जिनसे आज इनको काफी मुनाफा हो रहा है।
सोलर पंप से कम होगी लागत
अब यह जरूरी होगा कि जलवायु परिवर्तन के कृषि पर पड़ने वाले प्रभाव का आकलन करके कृषि में समग्र बदलाव किए जाएं। भारत सौर ऊर्जा के क्षेत्र में अग्रणी बन सकता है, ऐसे में किसान सोलर पंप का उपयोग करके अपनी लागत बचा सकते हैं और तापमान को भी कुछ हद तक बढ़ने से रोक सकते है। साथ जंगलों की आग रोकना, जंगलों को बढ़ाना, और पेड़ लगाने की और अधिक प्रेरित होना होगा। जलवायु परिवर्तन के इस खतरे को न तो अकेला किसान और न ही अकेली सरकार, कम कर सकती है। अतः जलवायु परिवर्तन के इस संकट से बचने और बचाने का सामूहिक प्रयास होना चाहिए। हमें यह हमेशा याद रखना चाहिए- ‘‘चिडि़या कितनी उड़े आकाश, दाना है धरती के पास’’।